Tuesday, June 5, 2012

पहले तो मेरे ख्वाबों की गलियों मे वो रोज़ आया करती थी,

पहले तो मेरे ख्वाबों की गलियों मे वो रोज़ आया करती थी,देखती थी मुझको और फिर धीरे से मुस्कुराया करती थी,पलकों को करके बंद उन गलियों मे उसका इंतज़ार करता था,कंही लौट ना जाये इस डर से पलकें खोलने से डरता था,ख्वाबों मे ही सही एक दुसरे का होने की हम कसमे खाते थे,बंद आँखों से देखा सब जो खुली आँखों से नहीं देख पाते थे.गुजरते वक़्त के साथ वो ख्वाब भी धुंधले से पड़ गए,

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